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बाल अपराध और रोकथाम

बाल अपराध का अर्थ – वे कार्य जो बालकों के द्वारा नियम विरुद्ध किये गए हो। कई विद्वानों के अनुसार एक बालक को अपराधी तभी माना जब उसकी समाज विरोधी गतिविधियां इतनी गंभीर रूप धारण कर लेती है कि उनके विरुद्ध क़ानूनी कार्यवाही करना आवश्यक हो जाता है। 

 बाल अपराध के अन्तर्गत हम कानून  के द्वारा निर्धारित उम्र के नीचे के बालक एवं बालिकाओं के त्रुटिपूर्ण व्यवहार को शामिल करते हैं। वे बालक जो जिनका आचरण समाज द्वारा इसीलिए स्वीकार नहीं है, क्योंकि वही दुर्व्यहार उसको अपराध करने के लिए उसको उत्तेजित कर सकता है। 

   -बाल अपराध को परिभाषित करते हुए मार्टिन न्यूमेयर मे लिखा है-“बाल अपराधी एक निश्चित आयु से कम का वह व्यक्ति है जिसने समाज विरोधी कार्य किया है तथा जिसका दुर्व्यवहार कानून को तोड़ने वाला हो।” 

   -सोल  रुवीन ने बाल अपराध को कानूनी अर्थ को एक पंक्ति में व्यक्त करते हुए लिखा है कि कानून जिस अपराध को बाल अपराध मानता है वही बाल अपराध है।   

     – मावरर ने बाल अपराध की परिभाषा इस प्रकार दी है- ‘ह व्यक्ति जो जान बूझकर इरादे के साथ तथा समझते हुए उस समाज की रूढ़ियों की उपेक्षा करता है जिससे उसका संबंध है।

      – एच. एच. लाऊ के अनुसार-  बाल अपराध किसी ऐसे बालक द्वारा किया गया विधि विरोधी कार्य है जिसकी अवस्था कानून में बाल अवस्था की सीमा में रखी गयी है और जिसके लिए कानूनी कार्यवाही तथा दंड व्यवस्था से भिन्न  है। 

 बाल अपराध  के कारण

1  ऐसे बालक जो आदतन स्कूल से भागते है। 

2  ऐसे लोगों के साथ रहता हो जो अपराधी किस्म के लोग हों। 

3  जिनके माता पिता अपराधी किस्म के हो। 

4  जो कानून के उल्लंघन करने वाली जगह पर जाता हो। 

5  ऐसे घरों में जाता हो जहाँ नियम विरुद्ध गतिविधियों का संचालन होता है। 

6  जो माता पिता और सरंक्षकों के नियंत्रण से बहार हो। 

7  जिन परिवारों में माता-पिता का जीवन बहुत व्यस्त हो।  

8  ऐसे बच्चे जिनको कठोर अनुशासन या आवश्यकता से अधिक स्वतंत्रता दी जाए। 

9  अधिक सुख कि चाह। 

10 अश्लील साहित्य पढ़ना या दृश्य देखना। 

 ऐसे अनेक कारण और भी है। 

रोकथाम – 

1  घर में वातावरण प्रेमपूर्ण होना चाहिए दूसरे बालक की जिज्ञासाओं के समाधान में बडी सावधानी की आवश्यकता है। कोई बात पूछने पर बालक को झिडक दिया जाए या उससे झूठ बोल देने पर प्रभाव बुरा पडता है। परिजनों को इस आदत से बचना चाहिए। 

2   बालकों से यौन जिज्ञासाओं के विषय में खुलकर बात करनी चाहिए । स्त्री पुरुष परस्पर प्रेम व्यवहार के समय बालक के आ जाने पर वे अपराधी की सी मुद्रा बना लेते हैं या बालको को फटकार देते हैं इससे बालक में अपराध ग्रंथी बन जाती है। आवश्यक यौन शिक्षा के अभाव में अनेक बालक-बालिकाऐं बाल अपराध की राह पर अग्रसर हो जाते है। माता-पिता बालक के सामने आदर्श होते है। उनके आपस में झगड़ों का और उनके चरित्र को ठीक रखने के विषय में बालक के प्रति जिम्मेदारी महसूस करनी चाहिए वास्तव में बालक को अपराध से बचाने का तरीका उसकी बुरी आदतों को रोकना नही बल्कि उसमें अच्छी आदतें डालना है।

3 मनोरंजन का व्यक्ति के जीवन में बडा महत्वपूर्ण स्थान होता है स्वस्थ मनोरंजन के अभाव में बालक की अपराधी प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन मिलता है। माता पिता दोनों ही कामकाजी हो तो उस परिस्थिति में बच्चों को अकेले रहने का मौका मिलता है और अश्लील वीडियो देखकर मनोरंजन करते हैं । ऐसी परिस्थिति से बचने के लिए हेल्थी मनोरंजन करवाना और माता पिता को बच्चों को समय देना चाहिए । 

4 बालकों को अपराधों से रोकने के लिए उनके मनोवैज्ञानिक दोषो का उपचार अत्यंत आवश्यक है इसके लिए सरकारों को विद्यालयों में मनोवैज्ञानिक क्लिनिक बनाने चाहिए जो बालकों के विषय में उचित देखभाल कर सकें तथा समय समय परामर्श दे सकें।

 -बृजमोहन 

 (स्वतंत्र पत्रकार, समालोचक, चिंतक, समीक्षक)

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